एक थी लड़की मेरी सहेली
साथ पली और साथ ही खेली
फूलों जैसे गाल थे उसके
रेशम जैसे बाल थे उसके
हम उसको गुड़िया कहते थे
रंगों की पुड़िया कहते थे
सारी थी मुझे प्यारी थी वो
नन्हीं राजकुलारी थी वो
एक दिन उसने भोलेपन से
पूछा ये पापा से जा के
अब मैं ख़ुश रहती हूँ जैसे
सदा ही क्या ख़ुश रहूँगी ऐसे
पापा बोले मेरी बच्ची
बात बताऊँ तुझ को सच्ची
कल की बात ना कोई जाने
कहते हैं ये सभी सियाने
( ये मत सोचो कल क्या होगा
जो भी होगा अच्छा होगा ) -२
बचपन बीता आई जवानी
लड़की बन गई रूप की रानी
college में इठलाती फिरती
बल खाती लहराती फिरती
एक सुन्दर चंचल लड़के ने
छुप-छुप कर चुपके-चुपके से
लड़की की तस्वीर बनाई
और ये कह कर उसे दिखाई
इस पर अपना नाम तो लिख दो
छोटा सा पैग़ाम तो लिख दो
लड़की पहले तो शरमाई
फिर मन ही मन में मुस्काई
इक दिन उसने भोलेपन से
पूछा ये अपने साजन से
अब मैं ख़ुश रहती हूँ जैसे
सदा ही क्या ख़ुश रहूँगी ऐसे
उसने कहा की मेरी रानी
इतनी बात है मैने जानी
कल की बात ना कोई जाने
कहते हैं ये सभी सियाने
( ये मत सोचो कल क्या होगा
जो भी होगा अच्छा होगा ) -३ ँ हूँ -२
इक परदेसी दूर से आया
लड़की पर हक़ अपना जताया
घर वालों ने हामी भर दी
परदेसी की मरज़ी कर दी
प्यार के वादे हुये ना पूरे
रह गये सारे ख़ाब अधूरे
छोड़ के साथी और हमसाये
चल दी लड़की देस पराये
दो बाँहों के हार ने रोका
वादों की दीवार ने रोका
घायल दिल का प्यार पुकारा
आँचल का हर तार पुकारा
पर लड़की कुछ मुँह से ना बोली
पत्थर बन कर ग़ैर की हो ली
अब गुमसुम हैरान सी है वो
मुझसे भी अनजान सी है वो
जब भी देखो चुप रहती है
कहती है तो ये कहती है
कल की बात ना कोई जाने
कहते हैं ये सभी सियाने
( ये मत सोचो कल क्या होगा
जो भी होगा अच्छा होगा ) -३
--साहिर, गुमराह, १९६३